काश उसको उस वक़्त किसीने तो, यह तसल्ली दिलाई होती तू घबरा मत मैं हूँ ना, यह बात कहके जताई...
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जाते जाते इस जहां से चलो कुछ ऐसा कर जाएँ कोई कितना भी भूलना चाहे हमें हम याद उन्हें आएँ।...
वो भी क्या ज़माना था जब शुरू हुआ ये याराना था लड़ते थे झगड़ते थे रूठने और मनाने के सिलसिले...
हर शाम तेरे साथ गुज़रती है, हर सुबह तेरी याद आती है, तेरी यादें तेरे क़रीब होने का "एहसास" कराती हैं।...
हर इंसां जो यहाँ आया है मुक़द्दर साथ ही में लाया है ना जाने क्यूं फिर भी लगी है भीड़...
आग़ाज़ ही किया है, अंजाम अभी बाकी है, मंज़िल पे पहुंचने का ख़्वाब अभी बाकी है। जो रुक कर ठहर...
वो ज़माना भी क्या ज़माना था जब मेरा तेरे घर आना जाना था कभी खनकती थी आंगन में तेरी पायल...
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