आग़ाज़ ही किया है, अंजाम अभी बाकी है,
मंज़िल पे पहुंचने का ख़्वाब अभी बाकी है।
जो रुक कर ठहर गए
तूफ़ान से डर के, यूँ किनारे पे
कोई ये उनको समझाए,
साहिल पे जो वो बैठे मुक़द्दर साथ नहीं देगा।
ज़माना था, जब कागज़ की वो कश्ती भी
कराती पार हमको थी
अब तो डूब रहा हर शख्स
ग़मो की तंग गलियों में।
जो करते थे अठखेलियां ताउम्र
नदी में दोस्तों के साथ
कोई ये उनको समझाये
है ये जो चाह मोती की किनारे से नहीं होगी
लगाना आखिरी गोता समंदर में अभी बाकी है।