जाते जाते इस जहां से
चलो कुछ ऐसा कर जाएँ
कोई कितना भी भूलना चाहे हमें
हम याद उन्हें आएँ।
शिक़वा नहीं उनसे
कि वे मसरूफ़ हैं इतने
ख़ैरियत भी हमारी कभी
वे पूछने नहीं आये।
ख़्वाहिश है बस इतनी
कि हो जब रुख़सती हमारी
तब फ़ुरसत के कुछ उन्हें पल मिले
और हम ज़हन में उनके बस जाएँ ।