हर इंसां जो यहाँ आया है
मुक़द्दर साथ ही में लाया है
ना जाने क्यूं फिर भी
लगी है भीड़ सड़कों पर
हर कोई दौड़ रहा बेवज़ह
यहाँ पे अव्वल आने को।
हर तरफ़ होड़ा होड़ी है
सिर्फ़ चीज़ों की जोड़ा जोड़ी है
मेरा हिस्सा तो मेरा है
तेरा हिस्सा भी मैं ले लूं
जमा कर लूं उजाले में
ना जाने कब अंधेरा हो।
हर शख़्स निकल पड़ा है
क़िस्मत अपनी लिखने को
और वे अब भी यही कहते हैं
कि कोई ले ना पाया
कभी भी वक़्त से पहले और
तक़दीर से ज़्यादा।