काश उसको उस वक़्त किसीने तो, यह तसल्ली दिलाई होती
तू घबरा मत मैं हूँ ना, यह बात कहके जताई होती।
चीख़ रहा था वो भीतर से, था बाहर से बिल्कुल चुप
गुमसुम सा रहने लगा था, कुछ कहता नहीं था अब
काश किसी को तो,उसकी ख़ामोशी के पीछे की
वो आवाज़ सुनाई देती।
सबकी आँखें हैं अब नम, दिल में बस यही है ग़म
आज वो होता हमारे संग, ग़र मसरूफ़ ना होते इतने हम
काश किसी ने तो उसके लिए
थोड़ी फ़िक्र पहले जताई होती।