वो ज़माना भी क्या ज़माना था
जब मेरा तेरे घर आना जाना था
कभी खनकती थी आंगन में
तेरी पायल की आवाज़े
कभी दिल को छू जाता था
वो धीरे से मुस्काना तेरा|
बहाने तुझसे मिलने के
मैं हर रोज़ बनाता था
कभी कुछ देने के लिए
कभी कुछ लेने आता था|
मेरा बस एक मकसद था
तेरा दीदार हो जाये
ना मैं बोलूं, ना तुम बोलो
हमें बस प्यार हो जाये|