आज जब फ़ुरसत में बैठकर
खोली जीवन की किताब
सोचा कुछ पन्ने ही पलट लें
कर लें कुछ हिसाब।
ताउम्र गुज़री कैसे हमारी
ये देखकर ही दिल रो दिया
जो पाया था बड़ी शिद्दत से
वो नादानी में खो दिया
और जो खोया अपनी ही बेरुखी से
कमबख़्त हर बार
उसी को पाने का दिल किया।
अब दिल में बस यही है आस
काश लम्हें वो कुछ ख़ास
फिर से जी जाएँ हम
जीवन बन जाये कोरा कागज़
और रंगीन स्याही में डूबोके
अपनी ये कलम
उसे अपने ही मुताबिक
इक बार फिर से लिख पाएँ हम।