यूँ तितलियों का फूलों पर बेबाकी से मंडराना
फूलों का ख़ुद ही में सिमटकर धीरे से शरमाना।
यूँ पंछियों का उन्मुक्त गगन में उँचे तक उड़ जाना
पेड़ों का हवा की ताल पर मदमस्त हो थिरथिराना।
यूँ अंबर में तारों का देर रात तक टिमटिमाना
चाँद का चाँदनी से हर रोज़ मिलने आना।
नदियाँ अब और खूबसूरती से बहने लगी हैं
ये ख़ामोशियाँ अब बहुत कुछ कहने लगी हैं।