इस ख़ुदगर्ज़ दुनिया में जहां रिश्तों के मायने नहीं हैं
तुझसे बेइंतहा मोहब्बत की उम्मीद लगा बैठी हूं
तेरी निगाहों ने ना जाने मुझे क्या तसल्ली दी है
मैं फिर से अपने सोए खाब जगा बैठी हूं।
बहुत सोचा ना चाहूं तुम्हें इस क़दर
पर तेरी सादगी पे फिर अपना दिल गवां बैठी हूं
बुझा दिया था जिनको मैंने ख़ुद अपने ही हाथों से
उन्हीं चराग़ों को मैं फिर से जला बैठी हूं।
तेरे आग़ोश में इतना महफूज़ सा लगता है
कि मैं अपने तमाम डर को आज भुला बैठी हूं
आख़िरी सांस भी आए अब तेरी ही पनाहों में
ख्वाहिशों की फ़ेहरिस्त में ये अर्ज़ी सबसे ऊपर लगा बैठी हूं।