आहिस्ता आहिस्ता मुझे
ये यकीं हो चला था
कोई और हो ना हो
वो हर हाल में मेरे साथ खड़ा था।
मेरे सही गलत होने का
न उसने कभी फ़ैसला किया
जब भी हारी थी मैं मैन से
उसी ने मुझे हौंसला दिया।
By Pooja Sharma
आहिस्ता आहिस्ता मुझे
ये यकीं हो चला था
कोई और हो ना हो
वो हर हाल में मेरे साथ खड़ा था।
मेरे सही गलत होने का
न उसने कभी फ़ैसला किया
जब भी हारी थी मैं मैन से
उसी ने मुझे हौंसला दिया।
यूं तो हर कोई शरीक-ए महफ़िल होता है
तन्हाइयों में जो साथ दे तो कोई बात हो
हो रूबरू जिसके तो ना रहे गुज़ारिश कोई बाक़ी
महज़ उसके होने से ही हर रात चांदनी रात हो।
ख़ामोश ही रहना तुम बस इतनी सी इल्तज़ा है
गुस्ताख़ दिल आज ज़रा बेपरवाह हो चला है।
कैसा अजीब ये इत्तेफ़ाक़ हो गया
जो था ख़यालों में बसा उसी का दीदार हो गया
मिली नजरों से नजरें कुछ इस क़दर
कि फिर इक दफ़ा हमें उसी से प्यार हो गया।
उनकी ख़ामोशी को नाराज़गी समझने की
भूल मत करना
कितनी भी ज़िद करें वो तुमसे दूर जाने की
तुम क़ुबूल मत करना
हो सकता है वो ज़रा तकल्लुफ़ कर रहे हों
जज़्बात ज़ाहिर करने में थोड़ा सा डर रहे हों
पलकों को अपनी बेवजह नम मत करना
वो नहीं करते हैं यह सोचकर,
अपनी मोहब्बत कभी कम मत करना।
बेशक कहा नहीं तुमनें कभी
पर ये इल्म है हमें
ज़ाहिर है निगाहों से तुम्हारी
कि हमसे इश्क़ है तुम्हें।
तेरे आग़ोश में खो जाऊं
बस यही आरज़ू है बाक़ी
ना-मुकम्मल हो ख़्वाब तो गिला नहीं कोई
ज़िंदगी गुज़र करने के लिए तेरी मौजूदगी ही है काफ़ी।