आहिस्ता आहिस्ता मुझे
ये यकीं हो चला था
कोई और हो ना हो
वो हर हाल में मेरे साथ खड़ा था।
मेरे सही गलत होने का
न उसने कभी फ़ैसला किया
जब भी हारी थी मैं मैन से
उसी ने मुझे हौंसला दिया।
By Pooja Sharma
आहिस्ता आहिस्ता मुझे
ये यकीं हो चला था
कोई और हो ना हो
वो हर हाल में मेरे साथ खड़ा था।
मेरे सही गलत होने का
न उसने कभी फ़ैसला किया
जब भी हारी थी मैं मैन से
उसी ने मुझे हौंसला दिया।
एक दूसरे के लिए जान देते देखा है बहुतों को हमनें
क्यूँ ना हम एक-दूसरे के ज़िंदा रहने की वज़ह बन जाएँ।
बहुत होशियार नहीं हूँ मैं हिसाब किताब रखने में
बस इतना जानती हूँ जितना खोया है मैंने उससे कही ज़्यादा पाया है।
ढूँढ रही हूँ एक ऐसा शक्स जिसके साथ मैं मैं हो जाऊँ
पढ़ ले वो नज़रों को मेरी, ख़ामोशियाँ उसकी मैं सुन पाऊँ।
खामखां मैंनें उन्हें अपने घर में जगह दे रखी थी
ना वो मेरे ख़ास थे, ना ही मैं उनकी अपनी थी।
शिकायतें हमको भी थी उनसे मगर फिर भी
दुआओं की फेहरिस्त में सबसे ऊपर उन्हीं का नाम था!
उड़ने को पंख थे पास मेरे
और चाहा मैंने मछली की तरह तैरना
नाकामियों को अपनी पहनाकर ताज क़िस्मत का
गुज़ार दी ज़िन्दगी यूँ ही ख़ुद को पहचाने बग़ैर।