ज़िन्दगी कभी इतनी हसीं नहीं थी
मैं खुश थी, मगर इतनी नहीं थी।
बेहिसाब थी बारिशें, तन्हाई के आलम में
"तिश्नगी" तब भी थी, मगर इतनी नहीं थी।
फूल हज़ारों खिले, दिल के गुलशन में
"महक" उनमें भी थी, मगर इतनी नहीं थी।
दिदार हुआ जब तुम्हारा, पहली नज़र में
"हसरतें" तब भी थी, मगर इतनी नहीं थी।
बस गए जब तुम, मेरे ज़हनो दिल में
"मोहब्बत" तब भी थी, मगर इतनी नहीं थी।