तन्हा सा बैठा था मैं, अपने कमरे में
एक आहट सी अचानक से, सुनाई दी मुझे
कोई दस्तक़ शायद दे रहा था
मेरे बंद दरवाज़े पर।
कौन होगा इस वक़्त, सोचकर मन घबराया
दिल ने फिर चुपके से कहा
अपनों को कहाँ फ़ुरसत है
जरूर कोई ग़ैर ही है आया।
जो देखा बाहर जाकर हर तरफ़
कहीं कोई भी ना नज़र आया
निकला इस ख़्वाबों की दुनिया से मैं
और अपनी नादानी पर, मन ही मन मुस्काया।