कोई कितना भी कुछ कहे मुझसे
जवाब मैं ख़ामोशियों से ही देता हूँ
आज कल ना जाने क्यूँ
मैं कुछ खोया-खोया सा रहता हूँ।
मेरे मन की गहराइयों में उतर कर
जो तुम इक बार देखोगे
ये मुस्कुराहटें लबों पर, बस एक छ्लावा है
भरी महफिल में भी मैं तन्हा-तन्हा सा रहता हूँ।
वो कहते हैं जो चलता रहे
उसी का नाम जीवन है
है मसरूफ़ हर शख़्स इस अन्धी दौड़ में
जाने क्यूँ फिर भी मैं रुका-रुका सा रहता हूँ।
1 thought on “खोया-खोया सा!”
Hi Pooja,
Again a good read.
Heartwarming 😢
You words are so powerful.
Loved every bit of it.