ना जाने क्यूँ कई सालों से, मैं वही गलती दोहरा रही हूँ
यह जानते हुए की टूटेगी, मैं फिर से उम्मीद किए जा रही हूँ।
एक उम्मीद कि वो मुझे मेरी ही तरह अपनाए
एक उम्मीद कि मेरी ग़लती पर भी मुझे गले से लगाए
मतलब के साथ जहाँ ख़त्म होते हैं सारे रिश्ते
एक उम्मीद कि आख़िरी दम तक वो साथ निभाए।
एक उम्मीद उनसे तारीफ़ पाने की
एक उम्मीद मुश्किल घड़ियों में साथ निभाने की
जज़्बतों को ज़ाहिर करते करते एक अरसा हुआ
एक उम्मीद कि अब इन ख़ामोशियों को वो समझ पाए।
एक उम्मीद खुले आसमान में पंख फैला कर उड़ जाने की
एक उम्मीद अधूरे ख़्वाबों को फिर से मुक़म्मल कर पाने की
हैं बहुत से शक्स जो मुझे सिर्फ़ बाहरी सतह से जानते हैं
एक उम्मीद कि कोई हो जो मेरी रूह को छू जाए।
4 thoughts on “फिर से उम्मीद किए जा रही हूँ!”
Truly awesome, the depth of meaning where he understand me Sliently because of tried of explain feeling…. , indeed a beautiful poetry. .. Ek umid aap ishi tarah un jazbaato ko shabdo main utare…. .
Thank you so much!
So beautiful……felt so deep 🥰🥰
Thank you so much 😍