चलते चलते थकनाथककर फिर थोड़ा ठहर जानाकभी यूँ ही लड़खड़ाते क़दमों सेबेवजह ज़मी पे गिर जानाबड़ा स्वाभाविक सा होता है।...
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गुरु वो है जो हमेंज़िंदगी की बारीकियाँ सीखाता हैघोर अंधकार के क्षणों में भीरौशनी की किरण दिखाता है। भूल जाते...
रिश्ता नहीं है मेरा कोई उससेना ही कोई जान पहचान हैफिर भी ना जाने क्यूँ उसके जाने सेमन थोड़ा परेशान...
सजी थी महफ़िल कुछ पुराने यारों के साथमस्ती में हम सब यूँ ही गुनगुना रहे थेखुले आसमान की हसीं वादियों...
कोख में पल रहे बच्चे सेमाँ सिर्फ़ इतना ही कह पाईमुझे माफ कर देना बेटामैं तुझे बचा ना पाईतुझे भूख...
भूल जाती हूँ अक़्सर, हर बार तुमसे ये कहनामैं रहूँ या ना रहूँ, तुम मेरे क़रीब ही रहनाज़िंदगी क़ायनात से...
खिड़की पर बैठी वो तक रही थी बाहरभारी मन से कुछ सोच रही थी शायदहवा के ठंडे झोंके ने भीतर...
जब भी गिरा मैं, तूने मुझको उठायाउँगली पकड़ के फिर से चलना सिखायासारी सारी रात तूने अखियों में काँटीअपने हिस्से...
ग़लतियाँ! गलती हो कोई तुझसे, तो ख़ुद को सज़ा ना देना दोस्तऐसा करने के लिए खड़े हैं, तेरे आस-पास बहुत...
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