खिड़की पर बैठी वो तक रही थी बाहर
भारी मन से कुछ सोच रही थी शायद
हवा के ठंडे झोंके ने भीतर तक झकझोर दिया
एक ही पल में उसे यादों की दुनिया से जोड़ दिया।
वो माँ के शीतल आँचल की छाया
पिता के मज़बूत कंधों का साया
वो भाई की शरारतें और बहन की अठखेलियाँ
बचपन की यादों को समेटे वो छोटी तंग गलियाँ।
वो छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे को चिढ़ाना
बेवजह रूठना, फिर ख़ुद ही मान जाना
वो यादों का पिटारा खोल, देर रात तक ठहाके लगाना
अपने ही बच्चों को अपने बचपन की बातें सुनाना।
वो बर्फ़ के गोले और रसीले फलों का भंडार
बेरोक टोक दिन भर घूमते रहना, यूँ ही सड़कों पर बाहर
वो मामा मासी का दुलार और नाना नानी का बेइंतहा प्यार
जिसे पाने को बच्चे भी करते हैं साल भर इंतज़ार।
सवाल है अपनी सुरक्षा का और राष्ट्र हित की भी यही है पुकार
ना जा पाएगी कोई भी बेटी अपने पीहर इस बार
बरसेंगी दूर से ही प्यार और ममता की ठंडी फ़ुहार
अपने ही घरों में रहकर मनाएंगे, हम गर्मी की छुट्टियों का त्यौंहार।
6 thoughts on “गर्मी की छुट्टियाँ!”
Beautiful…Pooja
🙂
Thank you so much Prachi.
बहुत खूब 👍
Shukriya.
So true , you always touch heart with your words 💖.
Thank you so much.