मज़बूत कंधे जो कभी बोझ उठाते थे सारा
खुशी खुशी बनते थे सभी के जीने का सहारा
उन्हीं कन्धों को, सहारे के लिए तरसते देखा है
हाँ मैंने उन्हें बूढ़ा होते देखा है।
क्या लाऊँ, क्या चाहिए जो हमेशा यही पूछा करते थे
ख्व़ाहिशें सबकी पूरी करने में दिन रात जुटे रहते थे
अपनी आम सी ज़रूरतों के लिए, उन्हें मोहताज़ होते देखा है
हाँ मैंने उन्हें बूढ़ा होते देखा है।
खुशियाँ अपनी जो बच्चों की मुस्कुराहट में ढूंढा करते थे
रोते हुए चेहरे को हँसाने की हर कोशिश किया करते थे
उन्हीं मुस्कुराते चेहरे पर, आँसू की बूंदो को टपकते देखा है
हाँ मैंने उन्हें बूढ़ा होते देखा है।
हो दर्द का आलम या हो तकलीफ़ कितनी भी चाहे
हज़ारों तूफान समन्दर में चाहे क्यूं ना हो आए
लगाकर हर गम को सीने से, ज़िन्दादिली से जीते देखा है
हाँ मैंने उन्हें बूढ़ा होते देखा है।