इतिहास के पन्नों में, ऐसा पहली बार ही शायद हुआ है
एक दूसरे के साथ ना हो बेशक़, एक दूसरे के लिए यहाँ हर कोई खड़ा है
देश, राज्य, मज़हब और कौम के नाम पर लड़ते रहे जो लोग
एकता के मज़बूत धागे में उनको, पिरो गया ये भयावह रोग।
भागते रहते थे हर वक़्त, जो भविष्य की चिंता में हो व्याकुल
मिलें हैं आज उन सभी को, अपनों के साथ फ़ुरसत के कुछ पल
गुज़ारा संग सबके जब वक़्त, तो राज़ ज़िंदगी का समझ में है आया
जो भी है बस यही एक पल है, कल कहाँ कभी है आया।
सम्पूर्ण विश्व आज मुश्किल की घड़ियों से गुज़र रहा है
हौंसला कितना भी हो बाहर, भीतर थोड़ा कम ही पड़ रहा है
यकीं है हमें कि साथ मिलकर दुविधा के इन क्षणों से उभर ही जायेंगे
"वसुधैव कुटुम्बकम" के नारे को सच करके दिखाएँगे।