सजी थी महफ़िल कुछ पुराने यारों के साथ
मस्ती में हम सब यूँ ही गुनगुना रहे थे
खुले आसमान की हसीं वादियों को छोड़कर
यादों की तंग गलियों में जा रहे थे।
लड़कपन की पहली मुहब्बत के किस्से
बेहिचक सब सुनाए जा रहे थे
ख़ूबसूरत एहसासों को फिर से जी कर
हौले से मन ही मन मुस्कुरा रहे थे।
सब छुपे रुस्तम थे यह जानकर
एक दूसरे की खिंचाई किए जा रहे थे
पर जो भी हो इसी बहाने से शायद
फिर से अपने बचपन को जी पा रहे थे।
नक़ाब जो उम्र के साथ ओढ़ लिया था सबने
आहिस्ता-आहिस्ता उसे उतारे जा रहे थे
राज़-ए-दिल बयां कर लगा कुछ यूँ
एक दूसरे के और क़रीब हम आ रहे थे।