रुख़सती के वक्त जिनसे, कभी ना मिलने की खाई थी कसमें
हम अभी-अभी उनसे मुलाक़ात करके लौटे हैं
था बहुत कुछ कहने को जो सोच कर गए थे
पर फिर इक बार इधर-उधर की ही बात करके लौटे हैं।
घंटों साथ बिताने पर भी कुछ ख़ास कहा नहीं हमनें
वो पढ़ते रहे निगाहें हमारी, हम उनके लबों की ख़ामोशियां सुनकर लौटे हैं।
तमाम फ़ासलों के बाद भी जो अब तक बेहद क़रीब थे
उनसे फिर दूर ना जाने की दरख़ास्त करके लौटे हैं।
किस्से सुना रहे थे वो अपनी ख़ुशहाल जिंदगी के
उनकी बातों पर हम फिर एतबार करके लौटे हैं
हर बार लबों पर आकर क्यूं ये जज़्बात ठहर जाते हैं
पूछ चुके थे कई दफ़ा जो, आज फिर वही सवाल करके लौटे हैं।
4 thoughts on “लौटे हैं!”
Wah wah…
Shukriya ❤️
Very nice 👍🙂
Thank you 😊