नीड़ को बनाना है बेहतर बस इसी होड़ में
दौड़ रहे थे पंछी सारे एक अंधी दौड़ में
कल्पना सुनहरे भविष्य की हर पल करते रहे
आज को जीने के बदले कल के लिए मरते रहे
एक दिन तूफान के डर से ठहर गया जब सब
पंछी सभी घरौंदे में अपने लौट चुके थे तब
गूँजी किलकारियाँ ऐसी जो पहले कभी ना सुनी थी
रिश्तों की ऐसी रंगीन चादर पहले कभी ना बुनी थी
मिला कुछ वक़्त तो सोचा अब तक यूँ ही भागते रहे हम
तिजोरी भरी रखी थी भीतर और बाहर झाँकते रहे हम