भूल जाती हूँ अक़्सर, हर बार तुमसे ये कहना
मैं रहूँ या ना रहूँ, तुम मेरे क़रीब ही रहना
ज़िंदगी क़ायनात से बेहतर लगती है, पहलू में तुम्हारे
दिल चाहता है तुम जीतते रहो, हम हर दफ़ा यूँ ही हारें।
तुम उम्मीद हो मेरी, हौसला भी तुम हो
जीने का मक़सद, ज़िन्दा रहने की वज़ह भी तुम हो
जज़्बा जीत का, ज़िन्दादिली की मिसाल हो तुम
हर वक़्त रहे जो साथ साये सा, वो अधूरा ख़्वाब हो तुम।
ना मिलने की है तमन्ना, ना दीदार की है ख़्वाहिश बाक़ी
साथ गुज़ारे वक़्त की ख़ूबसूरत यादों का, सिलसिला ही है काफ़ी
रूहानियत का वो पल महफ़ूज़ है, ज़हन में मेरे बनकर दुआ
बड़ी सादगी से तेरी रूह ने, जिस रोज़ मेरी रूह को छुआ।