जब भी गिरा मैं, तूने मुझको उठाया
उँगली पकड़ के फिर से चलना सिखाया
सारी सारी रात तूने अखियों में काँटी
अपने हिस्से की ख़ुशियाँ भी हम सब में बाँटी।
तूने जीवन का पाठ हमको पढ़ाया
सही गलत की पहचान करना बताया
हर मुश्किल पल में तू मेरे साथ थी खड़ी
लौटा जब भी मैं हारकर, तूने हिम्मत दी बड़ी।
मेरी हर ग़लती को तूने नज़रअन्दाज़ किया
बदमशियों के बदले भी, तूने सिर्फ़ प्यार दिया
तू कहती रही मैं जिंदगी हूँ तेरी
और मैं उलझा रहा व्यस्तताओं में मेरी।
जिंदगी की इस दौड़ में, था अव्वल मुझे आना
भाग रहा था सपनों के पीछे, ख़ुद को बड़ा था बनाना
आज चाहता हूँ, काश फिर से वो दिन लौट आए
तेरी गोद में मेरा सर हो और तू मेरे बालों को सहलाए।
बंद कर लूँ मुट्ठी में वो अनमोल घड़ी
बन जाऊँ मैं फिर से छोटा, तू रहे हमेशा बड़ी
वो लोग जो कहते हैं, भगवान नहीं होते कहीं
मुझे लगता है ठीक से उन्होंने तुम्हें कभी देखा ही नहीं।
2 thoughts on “माँ!”
Very touching 😊
Thank you so much.