कोख में पल रहे बच्चे से
माँ सिर्फ़ इतना ही कह पाई
मुझे माफ कर देना बेटा
मैं तुझे बचा ना पाई
तुझे भूख से ना मरने दूँ
इसीलिए मैं शहर की और आई
मुझे कहाँ पता था कि
उधर कुआँ था और इधर थी खाई।
इंसान पिंजरे में बंद है कुछ दिनों से
यही सोचकर मैं हिम्मत कर पाई
पर जब देखा खुले आम घूमते इनको
तो मन ही मन थोड़ा सा घबराई
फिर यह सोचकर यकीं कर लिया
कि इतना कुछ सहने के बाद
इनको कुछ तो समझ होगी आई।
बस मुझसे यही गलती हो गई
कि इन पर विश्वास कर लिया
इन्सान में थोड़ी सी इंसानियत का
फिर से आभास कर लिया
इनकी हैवानीयत ने
मनुष्यता को शर्मसार है किया
अगर इन्सान ऐसे होते हैं
तो गर्व है मुझे कि मैंने
जानवर के रूप में जन्म लिया।
3 thoughts on “मनुष्यता को फिर से शर्मसार है किया!”
🙏🏻🙏🏻🙏🏻 Real Thoughts of a Mother…
😊😍
ह्रदयविदारक रचना 😢
सच कहा फिर से एक बार मनुष्यता शर्मसार हुई 😓