वो दिन था मेरा और रात भी वो
सूने आसमां में जैसे, मेहताब था वो
वो मौन मेरा, अल्फाज़ भी वो
जज़्बातों का अनकहा, सैलाब था वो
वो गीत मेरा और साज़ भी वो
रुबरू रहे हर पल, ऐसा एहसास था वो
वो साथी मेरा और साथ भी वो
अजनबियों की बस्ती में, बेहद ख़ास था वो
वो रूह मेरी और साँस भी वो
दूर होकर भी, हर वक़्त दिल के पास था वो।