करी थी कोशिश हमने भी
करें ना ज़िक्र तुमसे कभी
बातें जो ज़हन में थी मेरे
रख लेते ताउम्र उनको वहीं।
कोई उम्मीद भी ना थी
ना ही थी कोई भी आस
कोई वजह भी कहाँ थी
कह देने को सारे राज़।
ना था आसान कहना भी
चुप रहना भी था मुश्किल
बहुत हमने दिल को समझाया
पर ये भी कहाँ बातों में आया।
फिर एक दिन देख कर खास
कर ही डाली मन की बात
ज़ाहिर किए सारे जज़्बात
क्यूँकि हम नहीं कहना चाहते थे "काश"।