चलते चलते थकना
थककर फिर थोड़ा ठहर जाना
कभी यूँ ही लड़खड़ाते क़दमों से
बेवजह ज़मी पे गिर जाना
बड़ा स्वाभाविक सा होता है।
परंतु हर बार जब हम भटके
तो एक राह होनी चाहिए
गिरकर फिर से उठने की
मन में एक चाह होनी चाहिए।
कई बार अंधेरा इतना गहरा जाता है
चाँद बादलों में ही कहीं खो जाता है
और हमारे समक्ष उगता हुआ सूरज भी
हमें ठीक से नज़र नहीं आता है।
किन्तु परिस्थितियाँ कैसी भी हो
हमें ना हार माननी चाहिए
घोर अन्धकार में भी लौ
निरंतर ये जलनी चाहिए।