बोझ अपने अधूरे ख़्वाबों का
और मुझ पर अब थोपो मत
उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त गगन में
और मुझे अब रोको मत।
छूना है हर एक शिखर की ऊँचाई को
अपनी ही रखी शर्तों पर
रहना चाहता हूँ अपनी ही धुन में
और मुझे अब टोको मत।
By Pooja Sharma
बोझ अपने अधूरे ख़्वाबों का
और मुझ पर अब थोपो मत
उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त गगन में
और मुझे अब रोको मत।
छूना है हर एक शिखर की ऊँचाई को
अपनी ही रखी शर्तों पर
रहना चाहता हूँ अपनी ही धुन में
और मुझे अब टोको मत।
एक दूसरे के लिए जान देते देखा है बहुतों को हमनें
क्यूँ ना हम एक-दूसरे के ज़िंदा रहने की वज़ह बन जाएँ।
बहुत होशियार नहीं हूँ मैं हिसाब किताब रखने में
बस इतना जानती हूँ जितना खोया है मैंने उससे कही ज़्यादा पाया है।
ढूँढ रही हूँ एक ऐसा शक्स जिसके साथ मैं मैं हो जाऊँ
पढ़ ले वो नज़रों को मेरी, ख़ामोशियाँ उसकी मैं सुन पाऊँ।
खामखां मैंनें उन्हें अपने घर में जगह दे रखी थी
ना वो मेरे ख़ास थे, ना ही मैं उनकी अपनी थी।
शिकायतें हमको भी थी उनसे मगर फिर भी
दुआओं की फेहरिस्त में सबसे ऊपर उन्हीं का नाम था!
उड़ने को पंख थे पास मेरे
और चाहा मैंने मछली की तरह तैरना
नाकामियों को अपनी पहनाकर ताज क़िस्मत का
गुज़ार दी ज़िन्दगी यूँ ही ख़ुद को पहचाने बग़ैर।