बोझ अपने अधूरे ख़्वाबों का
और मुझ पर अब थोपो मत
उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त गगन में
और मुझे अब रोको मत।
छूना है हर एक शिखर की ऊँचाई को
अपनी ही रखी शर्तों पर
रहना चाहता हूँ अपनी ही धुन में
और मुझे अब टोको मत।
By Pooja Sharma
बोझ अपने अधूरे ख़्वाबों का
और मुझ पर अब थोपो मत
उड़ना चाहता हूँ उन्मुक्त गगन में
और मुझे अब रोको मत।
छूना है हर एक शिखर की ऊँचाई को
अपनी ही रखी शर्तों पर
रहना चाहता हूँ अपनी ही धुन में
और मुझे अब टोको मत।
मुकद्दर की मेहरबानियों की इन्तहा तब हुई
जब हमनें चाहा सुकून और आप मिल गए!
उनका हाथ मेरे सर पर रखना और
मेरी आंखों से अश्कों का ख़ुद-ब-ख़ुद बह जाना
ये महज़ एक इत्तेफाक़ तो नहीं हो सकता!
अश्कों को भरकर आंखों में मुस्कुराने लगे हैं
वो ज़रूरत से ज़्यादा ही खुश नज़र आने लगे हैं!
छोड़ दिया है हमनें उनसे शिकायतें करना
वो कहते हैं मसरूफ़ हैं और हम मान लेते हैं!
जो गिरा था कांधे पर तेरे
वो आंसू का कतरा नहीं था
दिल में छिपे दर्द का वो हिस्सा था
जो तुझसे मिलकर भीतर रुका नहीं था।
जुनून-ए-जीत इस क़दर शामिल कर ख़ुद में
कि हर इम्तिहान के बाद हौंसले में इज़ाफ़त हो।