वो डूबी रही तिल-तिल जली
क्यूँकी उसने था ये ठाना
हर तरफ़ उजियारा लाना है
अंधेरा जग से मिटाना है।
बेखबर उसकी तकलीफ़ों से
जो बैठे थे गुरुर में अपनी
उन्हीं चरागों ने इठलाके कहा
कि रौशन हमसे जमाना है।
By Pooja Sharma
वो डूबी रही तिल-तिल जली
क्यूँकी उसने था ये ठाना
हर तरफ़ उजियारा लाना है
अंधेरा जग से मिटाना है।
बेखबर उसकी तकलीफ़ों से
जो बैठे थे गुरुर में अपनी
उन्हीं चरागों ने इठलाके कहा
कि रौशन हमसे जमाना है।
क्यूं दिल हर बार यही आरज़ू करता है
हर सूरत में तेरी ही जुस्तजू करता है।
निगाहों से निगाहें मिलाकर ही
वो हाल-ए-दिल सुना देते हैं
ज़ाहिर ना कर पाए जो जज़्बात हम अब तक
वो ख़ामोश रहकर ही समझा देते हैं।
हुनर सीखा है जब से हमने निगाहें पढ़ने का
उन्होेंने अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल बढ़ा दिया।
है रिश्ता कुछ ऐसा दरमियाँ हमारे
जो लफ़्ज़ों का मोहताज़ नहीं हैं
निगाहें ही बयां करती हैं हाल-ए-दिल
क्यूंकि कहने को अल्फाज़ नहीं हैं।
ना पूछ लेना हमसे कभी
कि तुम्हें हम कितना याद करते हैं
बात चाहे कोई भी चल रही हो
हम बस तेरी ही बात करते हैं।
कुछ कहने की अब हसरत ही नहीं रही बाक़ी
बस तुम यूं ही मिलते रहो, हम यूं ही देखा करें।