वो डूबी रही तिल-तिल जली
क्यूँकी उसने था ये ठाना
हर तरफ़ उजियारा लाना है
अंधेरा जग से मिटाना है।
बेखबर उसकी तकलीफ़ों से
जो बैठे थे गुरुर में अपनी
उन्हीं चरागों ने इठलाके कहा
कि रौशन हमसे जमाना है।
By Pooja Sharma
वो डूबी रही तिल-तिल जली
क्यूँकी उसने था ये ठाना
हर तरफ़ उजियारा लाना है
अंधेरा जग से मिटाना है।
बेखबर उसकी तकलीफ़ों से
जो बैठे थे गुरुर में अपनी
उन्हीं चरागों ने इठलाके कहा
कि रौशन हमसे जमाना है।
उन जैसा बनने की चाह में
मैं उम्र भर कोशिशें करती रही
ना उन जैसी कभी बन पाई
और ना ही ख़ुद सी रही।
ख़ामोशियों की सतह तक अगर तुम जाओगे
तो ख़ुद ही को बैठा हुआ पाओगे।
इन खमोशियों में ख़ुद को ढूँढना अच्छा लगता है
ना कुछ कह कर भी, सब कुछ बोलना अच्छा लगता है।
नज़र अंदाज़ कर ख़ुद की ख़ुशी
वो औरों की हँसी को ही अपना मानती रही
जो अपने आप में ही हर तरह से पूरी थी
वो उसकी कमी से, ख़ुद को अधूरा जानती रही।
आज फिर मेरा उन गलियों में जाना हुआ
यूँ लगा उन पलों को गुज़रे ज़माना हुआ
वो शहर जिसे हम समझते थे अपना
चंद ही सालों में वो बेगाना हुआ।
यकीं मानिये ज़िन्दगी में कोई ग़म नहीं है
बस आपकी गैरहाज़िरी में हम हम नहीं है!